हर वर्ष दिवाली के पहले दिन जब घर-आँगन दीपों से जगमगा उठता है, तभी से उत्साह बढ़ता है। धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, इसी मैजिक की शुरुआत है। इस त्योहार का महत्व सिर्फ धन-समृद्धि तक सीमित नहीं है — इसमें स्वास्थ्य, आध्यात्म और शुभ आरंभ की चाहत भी शामिल है।
नीचे जानिए कि धनतेरस में क्या लिया जाता है, धनतेरस की असली कहानी, पूजा विधि और दीपक कितने जलाने चाहिए — सब कुछ सरल और अर्थपूर्ण अंदाज में।
धनतेरस का महत्व और मुख्य कीवर्ड
यह ब्लॉग “धनतेरस” नामक मुख्य कीवर्ड के इर्द-गिर्द बनाया गया है। इसे अन्य सम्बद्ध कीवर्ड्स जैसे “धनतेरस पूजा विधि”, “धनतेरस खरीदारी”, “धनतेरस कथा” आदि से सपोर्ट किया गया है।
धनतेरस की कहानी — पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण
समुद्र मंथन और धन्वंतरि का अवतरण
सबसे लोकप्रिय कथा कहती है कि जब देव और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें से 14 रत्न निकले। उसी मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लिए प्रकट हुए। उन्हें देवताओं का वैद्य माना गया। उस दिन को मनाने से स्वास्थ्य, अमृत और समृद्धि मिले — और इसी कारण धनतेरस कहा जाने लगा।
तीन कथाएँ और विविध मान्यताएँ
धनतेरस की तीन मुख्य कथाएँ प्रचलित हैं —
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धन्वंतरि जयंती
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यम व दीपदान — माना जाता है कि इस दिन यमराज की पूजा या दीपदान करने से मृत्यु की भय नहीं होती।
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लक्ष्मी और कुबेर की आराधना — गृहस्थ जीवन में धन, वैभव और सौभाग्य लाने के लिए माता लक्ष्मी व देव कुबेर की पूजा।
विषय यह नहीं कि एक कहानी ही सही है — ये सभी कथाएँ मिलकर धनतेरस की समृद्धि, आरोग्य और नवीन आरंभ की भावना से जोड़ती हैं।
धनतेरस में क्या लिया जाता है?
इस प्रश्न का उत्तर सीधे-सीधे इस त्योहार की परंपरा से जुड़ा है।
शुभ वस्तुएँ जो खरीदनी चाहिए

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सोना, चाँदी — धातु खरीदना लाभदायक माना जाता है, क्योंकि यह अमृत और समृद्धि प्रतीक है।
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नए बर्तन (धातु के) — रसोई में नए बर्तन लेकर घर में तरंग और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
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झाड़ू, नमक, धनिया — कुछ स्थानों पर इन्हें शुभ माना जाता है — विशेष रूप से नमक से घर की सफाई और वास्तु दोष दूर करने का उपाय भी कहा जाता है।
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नई चीजें जैसे कुछ छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सजावटी वस्तुएँ आदि — नए आरंभ का प्रतीक।
ध्यान दें: इस दिन ऐसी वस्तुएँ न खरीदें जो टुट्टी हों या अधूरी हों — क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अशुभता को आमंत्रित किया जा सकता है।
धनतेरस की पूजा कैसे करें?
नीचे एक सरल और पथप्रदर्शक पूजा मार्गदर्शिका दी गई है: Also Watch Youtube
तैयारी
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सुबह स्नान करके शुद्ध और साफ वस्त्र पहनें।
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पूजा स्थान (उत्तरी-पूर्व दिशा) साफ करें और पूजा चौकी व्यवस्थित करें।
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प्रतिमाएँ / चित्र — माता लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि एवं देव कुबेर स्थापित करें।
व्रत एवं आराधना
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प्रदोष काल (संध्या समय) में पूजा करना उत्तम माना गया है।
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दीपक, धूप, अगरबत्ती, रोली, चावल, पुष्प, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।
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मंत्र जप — उदाहरण स्वरूपः
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ॐ धन्वंतरये नमः
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ॐ ह्रीं कुबेराय नमः (108 बार)
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आरती करें, भोग लगाएँ और अंत में प्रसाद वितरित करें।
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दान करें — जैसे सफेद कपड़ा, मिठाई, चावल आदि — इसे शुभ माना जाता है।
दीपक कितने जलाने चाहिए?
धनतेरस पर दीपक जलाना एक महत्वपूर्ण रस्म है।
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मुख्य प्रवेश द्वार और मुख्य कमरे पर दीपक रखें ताकि सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करे।
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यम दीपदान — माना जाता है कि मुख्य द्वार पर एक दीपक यमराज के लिए जलाना शुभ है।
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लगभग कम से कम 3 दीपक जलाना चाहिए — एक धन्वंतरि, एक लक्ष्मी/कुबेर, और एक यमराज/मुख्य द्वार पर।
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अगर संभव हो, तो घर के हर कोने या पूजा स्थल के चार कोनों में दीपक लगाने की प्रथा अपनाई जाती है।
शाम के समय प्रदोष काल में दीपक जलाना विशेष फलदायी माना जाता है।
निष्कर्ष
धनतेरस सिर्फ खरीद-फरोख्त का दिन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, नए आरंभ और समृद्धि की कामना करने वाला पावन अवसर है। इस दिन यदि आप शुभ वस्तुएँ खरीदें, पूजा विधि विधिपूर्वक करें और दीपक जलाएं, तो ये सब मिलकर आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि ला सकते हैं।
तो इस बार धनतेरस पर सिर्फ वस्तुएँ खरीदने तक सीमित न रहें — पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करें, दीपक जलाएं और अपने जीवन को आलोकित करें।




